हिन्दी पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 24 अक्टूबर 2021 दिन रविवार को प्रात: 03 बजकर 01 मिनट पर हो रहा है। चतुर्थी तिथि का समापन अगले दिन 25 अक्टूबर दिन सोमवार को प्रात: 05 बजकर 43 मिनट पर हो रहा है। अतः करवा चौथ व्रत 24 अक्टूबर दिन रविवार को रखा जाएगा। करवा चौथ के दिन पूजा का समय सायं 05 बजकर 30 मिनट से सायं 06 बजकर 46 मिनट के मध्य होगा। इस समय चौथ माता यानी माता पार्वती, भगवान शिव, गणेश जी, भगवान कार्तिकेय का विधिपूर्वक पूजन करना शुभ होगा। इसके बाद चंद्रमा के उदय होने पर उनकी पूजा करें और अर्घ्य दें। पति की लंबी आयु और सुखी जीवन की कामना करें। उसके बाद पति के हाथों जल ग्रहण करके व्रत का पारण करें। पारण से ही व्रत पूरा होता है।
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करवा चौथ व्रत कथा

एक साहूकार के सात बेटे थे। जिनकी एक बहन थी। वो सभी अपनी बहन से बहुत अधिक प्यार करते थे। उसकी शादी होने के बाद पहली बार करवा चौथ का व्रत आया। व्रत करने के लिए वो मायके आ गई। शाम को उसके भाई जब अपना काम से घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी।
सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वो अभी खाना नहीं खा सकती है। बहन के प्यार की वजह से सभी भाई मिलकर अपनी बहन से झूठ बोलते है कि चंद्रोदय हो गया है और उसे झूठा चांद दिखाकर भोजन करवा देते है। बहन इस बात से अनजान होती है। भोजन कर जैसे ही उठती है तो उसे खबर मिलती है कि उसके पति की मृत्यु हो गई है।
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दुखद समाचार सुनकर उसकी भाभी उसे बताती है कि भाईयों ने प्रेमवश झूठे चांद को अर्घ्य दिलवा दिया इसलिए ही तुम्हारे पति की मृत्यु हुई है। सच्चाई जानने के बाद वो निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उसे पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वो पूरे एक साल उसकी देखभाल करती है उसके के शव ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को निकालती रहती है। अगले साल करवा चौथ का व्रत आने पर वो फिर से पूरी निष्ठा से व्रत कर आराधना करती है और देवताओं से अपनी गलती की माफी मांगकर अपने पति के फिर से जीवित होने की प्रार्थना करती है। ईश्वर के आशिर्वाद से उसका पति जीवित हो जाता है। तब से आजीवन वो इस व्रत को श्रद्धा करती है।
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