हिंदू धर्म में गंगा को मां का दर्जा दिया गया है। गंगाजल बहुत ही पवित्र और पूजनीय माना जाता है। हिंदू धर्म में हर शुभ कार्य और पूजा अनुष्ठान में गंगाजल का प्रयोग अवश्य किया जाता है। दुनिया की सबसे पवित्र नदियों में एक है गंगा। गंगा के निर्मल जल पर लगातार हुए शोधों से भी गंगा विज्ञान की हर कसौटी पर भी खरी उतरी विज्ञान भी मानता है कि गंगाजल में किटाणुओं को मारने की क्षमता होती है जिस कारण इसका जल हमेशा पवित्र रहता है। गंगा जी भवतारिणी हैं, इसलिए हिंदू धर्म में गंगा दशहरा का विशेष महत्व माना जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन मां गंगा का अवतरण पृथ्वी पर हुआ था। भागीरथ अपने पूर्वजों के उद्धार करने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाए थे। इसी कारण गंगा को भागीरथी भी कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का पावन पर्व मनाया जाता है। इस बार 20 जून 2021 दिन रविवार को गंगा दशहरा मनाया जाएगा। इस दिन विधिपूर्वक मां गंगा की पूजा की जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस दिन गंगा में स्नान करना और इसके बाद दान-पुण्य करने का विशेष महत्व होता है। वहीं इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है।
गंगा दशहरा शुभ मुहूर्त
- दशमी तिथि प्रारंभ : 19 जून 2021 दिन शनिवार, शाम 06:45 बजे
- दशमी तिथि समाप्त : 20 जून 2021 रविवार, शाम 04:20 बजे
गंगा दशहरा की कथा
एक बार राजा सगर ने साठ हजार पुत्रों के साथ एक बहुत विशाल यज्ञ किया। उस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला। देवराज इंद्र ने सगर के यज्ञ के अश्व का हरण कर लिया। यह यज्ञ के लिए विघ्न था पर अंशुमान ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों के संग अश्व को खोजना शुरू कर दिया। सारा भूमंडल खोज लिया। परन्तु अश्व का कहीं पता नहीं चला। ढूंढते हुए यह सब भगवान महर्षि कपिल के पास पहुँचे। कपिल जी वहाँ तप कर रहे थे। उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा था। सभी उन्हें देखकर चोर-चोर चिल्लाने लगी। महर्षि कपिल की समाधि टूट गई। जब महर्षि ने अपने नेत्र खोले तो तो वहां मौजूद सगर के बेटे भस्म हो गए।
इन मृत लोगों के उद्धार के लिए ही महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया था। भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उनसे वर मांगने को कहा तो भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने को कहा।
इस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि राजन आप पृथ्वी पर गंगा का अवतरण तो चाहते हों, परन्तु आपने पृथ्वी से पूछा है कि क्या वह गंगा के भार और वेग को संभाल पाएंगी। मेरा विचार है कि गंगा के वेग को संभालने के लिए शक्ति केवल भगवान शंकर में है। इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त किया जाये।
महाराज भगीरथ ने वैसा ही किया। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने गंगा जी की धारा को अपने कमण्डल से छोड़ा। तब भगवान शिव ने गंगा की धाराओं को अपनी जटाओं में समेट लिया और जटाएं बांध लीं। इसका परिणाम यह हुआ कि गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका।
अब महाराज भगीरथ को और भी अधिक चिंता हुई। उन्होंने एक बार फिर से भगवान शिव की आराधना की। तब कहीं भगवान शिव ने गंगा की धारा को मुक्त करने का वर दिया। इस प्रकार शिवजी की जटाओं से होकर गंगाजी का अवतरण पृथ्वी पर हुआ।
इस प्रकार भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण करके बड़े भागशाली हुए। भगीरथ की साधना से सम्पूर्ण जगत का उद्धार हुआ और आज भी हो रहा है। युगों-युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है। गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देती, बल्कि वह उन्हें मृत्यु के उपरांत मुक्ति भी देती है।